
‘सम्मान मांगा था, अपमान मिला…’, जानें- 20 साल पहले राज ठाकरे ने क्यों छोड़ी शिवसेना, उद्धव से मतभेद की पूरी कहानी
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच के मतभेद और राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने की कहानी महाराष्ट्र की राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ रही है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि राज ठाकरे को कहना पड़ा – ‘सम्मान मांगा था, अपमान मिला…’
🔙 पृष्ठभूमि:
राज ठाकरे, शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के भतीजे हैं और राजनीति में अपने तीखे भाषणों और करिश्माई व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। वे लंबे समय तक शिवसेना की युवा इकाई ‘युवा सेना’ से जुड़े रहे और संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
⚡ असली मतभेद की शुरुआत:
2003-2004 के दौर में बाला साहेब ठाकरे की तबीयत बिगड़ने लगी और शिवसेना में नेतृत्व को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गईं।
पार्टी के भीतर दो धड़े बनने लगे – एक जो राज ठाकरे को उत्तराधिकारी मानता था, दूसरा जो उद्धव ठाकरे के समर्थन में था।
🧨 राज का आरोप:
राज ठाकरे का कहना था कि उन्होंने शिवसेना के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन उन्हें वह सम्मान और नेतृत्व की भूमिका नहीं दी गई जिसकी वे अपेक्षा कर रहे थे।
उनके शब्दों में –
“सम्मान मांगा था, अपमान मिला…”
इस वाक्य में उनका दर्द साफ झलकता है कि उन्हें नजरअंदाज किया गया।
🏃♂️ पार्टी से विदाई:
नवंबर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद 2006 में उन्होंने अपनी पार्टी “महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS)” की स्थापना की।
🤝 ठाकरे परिवार में दरार:
हालांकि उन्होंने कई बार कहा कि उनका उद्धव से व्यक्तिगत बैर नहीं है, लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण और नेतृत्व के तरीकों को लेकर गहरी असहमति थी।
बाला साहेब ने अंतिम समय तक दोनों के बीच की दूरी को कम करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।
📌 निष्कर्ष:
राज ठाकरे का शिवसेना छोड़ना केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक परिवार के भीतर नेतृत्व की लड़ाई, सम्मान और अस्मिता की जंग भी थी। यह कहानी आज भी महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा उदाहरण मानी जाती है कि कैसे आंतरिक राजनीति और नेतृत्व की महत्वाकांक्षा किसी भी संगठन को विभाजित कर सकती है।